रविवार बीतने से पहले बीता सप्ताह वैसे तो सामान्य था लेकिन इस सप्ताह में जो खास आकर्षण था वह था देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कॉंग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी, अभिनेता अनुपम खेर तथा जे.एन.यू. छात्र संघ नेता कन्हैया का भाषण।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो भाषण दिया वह अपने आप में सम्पन्न भाषण था। मोदी ने देश से लेकर राहुल गांधी की बात करते हुए तंज भी कसे तथा अपनी बात भी कही। बेशक इस बीच वह कई बार गंभीर हुए तथा कई बार उन्होंने उन पर तंज कसने वालों को डोज़ भी दिया।
इस सप्ताह में एक जो भाषण सबसे अधिक सुनने लायक था वह था राहुल गांधी का ।
इस सप्ताह में एक जो भाषण सबसे अधिक सुनने लायक था वह था राहुल गांधी का ।
यह नहीं की राहुल ने देश के लिए कोई बड़ी बात कर दी। गांधी बेशक देश की कमान संभालने की इच्छा रखते हैं तथा उनकी पार्टी के लोग मजबूरी में उनका साथ भी दे रहे हैं। लेकिन जिस तरह से वह नरेगा, नारेगा तथा मानरेगा के शब्द जाल में फंस कर रह गए उससे उनकी अभिव्यक्ति कि आजादी का भी प्रदर्शन हो गया।
दि टैलीग्राफ के एक कार्यक्रम में अनुपम खेर के भाषण बेशक कन्हैया की स्पीच से बाद में चैनलों की शोभा बना लेकिन उस भाषण का जिकर पहले करना लाज़मी है। ज स्टिस गांगुली तथा रणदीप सुरजेवाला की अभिव्यक्ति की आज़ादी की जिस तरह से अनुपम खेर ने हवा निकाली वह देखने लायक थी । बेशक जो लोग भाजपा या मोदी सरकार की नीतियों से सहमत नहीं हैं वह लोग तर्क दे सकते हैं भाजपा वालों के पास ऐसी बातों के इलावा कुछ है ही नहीं।
अब बात कन्हैया की । युवा जोश और सी.पी.आई. के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फ़ैडरेशन का बैक·अप। वैसे तो लाईम लाईट में आने के लिए इतना सब कुछ काफी होता है। मैने भी चैनलों पर कन्हैया का भाषण सुना तथा महसूस की उसने लोगों के सामने अपनी बात रखने की कला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तो न सही लेकिन राहुल गांधी को जरूर पीछे छोड़ दिया है।
जेल में भोजन की थाली में परोसी गई नीली व लाल कटोरी को जिस तरह से उसने भाषण के माध्यम से प्रस्तुत किया, वह उसके नेतृत्व के स्तर को प्रस्तुत करने के लिए काफी है। लेकिन पूरे भाषण में एक बात जिसका बेसब्री से इंतजार कर रहा था वह था 9 फरवरी का जे.एन.यू. के अंदर हुआ घटनाक्रम जिसमें देश विरोधी नारे लग रहे थे तथा और कन्हैया वहां मौजूद था। इस मसले पर उसने मुंह नहीं खोला जिसने इस पूरे मामले में उसको खुद को पाक साफ बताने की कोशिश को खारिज कर दिया है। शायद कन्हैया यह भी भूल गया कि माननीय अदालत ने जो 23 पेज का फैसला दिया है उसमें न तो वह अभी देशद्रोह के आरोप से बरी हुआ है तथा न ही क्लीन चिट अदालत ने दी है। बल्कि अदालत ने कन्हैया को फटकार लगाई है तथा देश विरोधी माहौल में बढ़ रहे संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए इलाज तलाश करने को भी कहा है।
--अनिल पाहवा